कल का सूर्योदय हर मायने में 'नव-प्रात' ले कर उपस्थित हो, इस कामना के साथ एक दुआ-
"इस साल न हो पुर-नम आंखें, इस साल न वो खामोशी हो,
इस साल न दिल को दहलाने वाली बेबस-बेहोशी हो,
इस साल मुहब्बत की दुनिया में, दिल-दिमाग़ की आखेँ हों,
इस साल हमारे हाथों में आकाश चूमती पाखें हों,
ये साल अगर इतनी मुहलत दिलवा जाए तो अच्छा है,
ये साल अगर हमसे हम को, मिलवा जाए तो अच्छा है,
चाहे, दिल की बंजर धरती सागर भर आसूँ पी जाए,
ये साल मगर कुछ फूल नए खिलवा जाए तो अच्छा है,
ये साल हमारी क़िस्मत में कुछ नए सितारे टांकेगा,
ये साल हमारी हिम्मत को कुछ नई नज़र से आंकेगा,
इस साल अगर हम अम्बर से दु:ख की बदली को हटा सके,
तो मुमकिन है कि इसी साल हम सब में सूरज झाँकेगा........!"
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